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दैव्या॑वध्वर्यू॒ऽआ ग॑त॒ꣳ रथे॑न॒ सूर्य॑त्वचा। मध्वा॑ य॒ज्ञꣳ सम॑ञ्जाथे। तं प्रत्नथा॑। अ॒यं वेनः। चित्रं दे॒वाना॑म् ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्यौ॑। अ॒ध्व॒र्यू॒ऽइत्य॑ध्वर्यू। आ। ग॒त॒म्। रथे॑न। सूर्य॑त्व॒चेति॒ सूर्य॑त्वचा ॥ मध्वा॑। य॒ज्ञम्। सम्। अ॒ञ्जा॒थे॒ऽ इत्य॑ञ्जाथे ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दैव्यौ) अच्छे उत्तम विद्वानों वा गुणों में प्रवीण (अध्वर्यू) अपने अहिंसारूप यज्ञ को चाहते हुए दो पुरुषो ! आप (सूर्यत्वचा) जिसका बाहरी आवरण सूर्य के तुल्य प्रकाशमान ऐसे (रथेन) चलनेवाले विमानादि यान से (आ, गतम्) आइये और (मध्वा) कोमल सामग्री से (यज्ञम्) यात्रा संग्राम वा हवनरूप यज्ञ को (सम्, अञ्जाथे) सम्यक् प्रकट करो ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - राजादि मनुष्यों को चाहिये कि सूर्य के प्रकाश के तुल्य विमानादि यान, संग्राम वाहनादि को उत्पन्न कर यात्रादि अनेक व्यवहारों को सिद्ध किया करें ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(दैव्यौ) देवेषु दिव्येषु विद्वत्सु गुणेषु वा कुशलौ (अध्वर्यू) यावात्मनोऽध्वरमहिंसायज्ञमिच्छन्तौ (आ) (गतम्) गच्छतम् (रथेन) गमकेन यानेन (सूर्यत्वचा) सूर्य इव देदीप्यमाना त्वग्बाह्यमावरणं यस्य तेन (मध्वा) कोमलसामग्र्या (यज्ञम्) यात्राख्यं सङ्ग्रामाख्यं हवनाख्यं वा (सम्) (अञ्जाथे) ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे दैव्यावध्वर्यू ! सूर्यत्वचा रथेनागतं मध्वा यज्ञं च समञ्जाथे ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - राजादिमनुष्यैः सूर्यप्रकाश इव विमानादीनि यानानि संग्रामं हवनादिकं रचयित्वा यात्रादिव्यवहाराः साधनीयाः ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा वगैरेंनी सूर्यप्रकाशाप्रमाणे प्रकाशमान विमाने, याने आणि युद्धासाठी वाहने तयार करावीत, तसेच त्याद्वारे यात्राही कराव्यात.